फिर कहीं दूर से एक बार सदा दो मुझको,
मेरी तन्हाई का एहसास दिला दो मुझको.
एक घुटन सी है फ़िजा में के सुलगता हूं मैं,
जल उठूंगा कभी दामन की हवा दो मुझको.
मैं समंदर हूं खामोशी मेरी मजबूरी है,
दे सको तो किसी तूफान की दुआ दो मुझको.
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
5 माह पहले
2 टिप्पणियां:
मैं समंदर हूं ख़ामोशी मेरी मजबूरी है,
दे सको तो किसी तूफ़ान की दुआ दो मुझको.
बहुत ख़ूब !
क्या बात है भाई सैयद अख़्लाक़ अब्दुल्लाह जी !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut hi aabhar aapka rajendra ji..Shukriya
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