शुक्रवार, 24 जून 2011

फिर कहीं दूर से एक बार सदा दो मुझको,
मेरी तन्हाई का एहसास दिला दो मुझको.
एक घुटन सी है फ़िजा में के सुलगता हूं मैं,
जल उठूंगा कभी दामन की हवा दो मुझको.
मैं समंदर हूं खामोशी मेरी मजबूरी है,
दे सको तो किसी तूफान की दुआ दो मुझको.


2 टिप्‍पणियां:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

मैं समंदर हूं ख़ामोशी मेरी मजबूरी है,
दे सको तो किसी तूफ़ान की दुआ दो मुझको.

बहुत ख़ूब !
क्या बात है भाई सैयद अख़्लाक़ अब्दुल्लाह जी !


हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Syed Akhlaque Abdullah ने कहा…

bahut hi aabhar aapka rajendra ji..Shukriya